बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में बाघ और हाथियों जैसे संरक्षित वन्यजीवों की मौत के मामलों को लेकर हाई कोर्ट गंभीर है। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश रमे...
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में बाघ और हाथियों जैसे संरक्षित वन्यजीवों की मौत के मामलों को लेकर हाई कोर्ट गंभीर है। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य शासन की ओर से उप महाधिवक्ता शशांक ठाकुर ने जवाबी शपथपत्र पेश किया। इसमें वन विभाग की ओर से अब तक उठाए गए कदमों की जानकारी दी गई। शपथपत्र में बताया गया कि 17 मार्च को इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय बैठक हुई। बैठक में विशेष रूप से बाघों की सुरक्षा और संरक्षण पर विस्तार से चर्चा की गई। बाघों की लगातार हो रही मौत को गंभीरता से लेते हुए उत्तर प्रदेश के बाघ मित्र मॉडल का अध्ययन किया गया। इसके तहत छत्तीसगढ़ के वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की टीम ने यूपी के विभिन्न बाघ अभयारण्यों और वहां के सीमावर्ती गांवों का दौरा किया और वहां के सफल प्रयासों को समझा। शासन का कहना है कि यूपी मॉडल की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी बाघ मित्र योजना लागू की जाएगी। इसका मकसद मानव-बाघ संघर्ष को कम करना और वन्यजीवों की प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। गौरतलब है कि 8 नवंबर 2024 को कोरिया जिले के गुरु घासीदास नेशनल पार्क के पास देवशील कटवार गांव के समीप नदी किनारे एक बाघ का शव मिला था। बाघ के नाखून, दांत और आंख गायब पाए गए थे, जिससे इसे शिकार की घटना माना गया। प्रारंभिक रूप से बाघ को जहर देकर मारने की आशंका जताई गई थी। मगर, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जहर की पुष्टि नहीं हुई और बीमारी को संभावित कारण बताया गया।
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