गरियाबंद। बस्तर क्षेत्र में लगातार हो रहे मुठभेड़ों और सुरक्षाबलों के सफल ऑपरेशनों ने नक्सलियों की जड़ें हिला दी हैं। बस्तर के घने जंगलों...
गरियाबंद। बस्तर क्षेत्र में लगातार हो रहे मुठभेड़ों और सुरक्षाबलों के सफल ऑपरेशनों ने नक्सलियों की जड़ें हिला दी हैं। बस्तर के घने जंगलों में सुरक्षित ठिकाने तलाशने वाले नक्सली अब अपनी रणनीति बदल चुके हैं। अबूझमाड़ और पामेड़ जैसे नक्सलगढ़ों में सुरक्षा बलों की बढ़ती पैठ और नए कैंपों की स्थापना के चलते नक्सलियों को मजबूरन गरियाबंद जिले की ओर भागना पड़ा। गरियाबंद और ओडिशा के बार्डर से सटे दुर्गम जंगल और पहाड़ियां नक्सलियों के लिए अस्थायी सुरक्षित ठिकाने बन गए थे। यह इलाका ओडिशा से सटा होने के कारण उन्हें भागने और छिपने के कई रास्ते प्रदान करता है। खासतौर पर गरियाबंद का मैनपुर क्षेत्र नक्सलियों के मूवमेंट के लिए आदर्श साबित हुआ। धमतरी के सिहावा, कांकेर और कोंडागांव के रास्ते यहां पहुंचकर वे ओडिशा में आसानी से प्रवेश कर सकते थे। यही कारण है कि नक्सलियों ने इस क्षेत्र को अपना नया बेस बनाने की कोशिश की। इस मुठभेड़ के दौरान मारे गए नक्सली सिर्फ छोटे कैडर के नहीं थे, बल्कि इनमें शीर्ष नेतृत्व के सदस्य भी शामिल थे। जिन नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि हुई है, वे सेंट्रल कमेटी के सदस्य थे। यह वही नक्सली टॉप लीडरशिप का हिस्सा थे, जो संगठन की रणनीति तय करते थे। अब तक गरियाबंद में सिर्फ डिविजनल कमेटी मेंबर (DVCM) और एरिया कमेटी मेंबर (ACM) स्तर के नक्सलियों की हलचल देखी जाती थी। मगर, पहली बार इतने उच्च स्तर के नेताओं की मौजूदगी इस इलाके में देखी गई। यह इस बात का पुख्ता सबूत है कि बस्तर में अपनी पकड़ कमजोर होने के कारण नक्सली गरियाबंद को नया ठिकाना बना रहे थे।
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