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'अरपा' में जीवित है पितृ तर्पण की प्राचीन परंपरा,पितृ पक्ष में यहां श्राद्ध का विशेष महत्व

 बिलासपुर। संस्कारधानी की पहचान है अरपा नदी। जो पितृ पक्ष में विशेष धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व रखती है। नदी के तटों पर वर्षों से स्थानीय वनव...


 बिलासपुर। संस्कारधानी की पहचान है अरपा नदी। जो पितृ पक्ष में विशेष धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व रखती है। नदी के तटों पर वर्षों से स्थानीय वनवासी और अन्य समुदायों के लोग पितरों को तर्पण अर्पित करने की प्राचीन परंपरा को निभाते आ रहे हैं। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के भूगोल अध्ययन शाला के विशेषज्ञ डा. पीएल चंद्राकर वर्षों से इस नदी में शोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि अरपा नदी पितृ पक्ष के दौरान श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल बन जाती है। जहां प्रतिदिन सुबह लोग स्नान कर अपने पितरों को तर्पण देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। जहां श्रद्धालु पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से अनुष्ठान करते हैं।
बिलासपुर की सांस्कृतिक धरोहर
अरपा नदी की लंबाई 164 किलोमीटर है, जो उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। इसका उद्गम गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (जीपीएम) जिले के ग्राम तवाडबरा के अमरकुंड से होता है। और इसका संगम शिवनाथ नदी से बिल्हा के ग्राम मटियारी के पास होता है। शोध अध्ययन के अनुसार अरपा नदी का नामकरण इसके विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से हुआ है, जो इसे बहुनामीय नदी बनाता है। साथ ही यह एक स्थायी नदी है जो इसे और भी विशेष बनाती है। यह बिलासपुर की सांस्कृतिक धरोहर है।
तर्पण करने से पुण्य प्राप्ति
अरपा नदी का जल धार्मिक दृष्टि से भी पवित्र माना जाता है और यहां तर्पण करने से पुण्य प्राप्ति की मान्यता है। इस पवित्र अनुष्ठान के माध्यम से न केवल श्रद्धालु अपने पूर्वजों को सम्मानित करते हैं। बल्कि यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सांस्कृतिक धरोहर भी है। शोध से यह स्पष्ट होता है कि अरपा नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व केवल एक जलधारा तक सीमित नहीं है। बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है।

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