बिलासपुर। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पहले बिलासपुर लोकसभा अनुसूचित जाति के लिए और जांजगीर सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित की गई थी। परिसीमन के बा...
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पहले बिलासपुर लोकसभा अनुसूचित जाति के लिए और जांजगीर सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित की गई थी। परिसीमन के बाद आरक्षण की स्थिति दोनों ही सीटों पर बदली। या यूं कहें कि आरक्षण के मसले पर अदला-बदली हो गई। बिलासपुर सामान्य वर्ग के लिए और जांजगीर अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। तब से लेकर अब तक हुए चार चुनाव में दोनों ही सीटों पर भाजपा चुनाव जीतते आ रही है। बिलासपुर लोकसभा सीट पर भाजपा का बीते 27 साल से कब्जा चला आ रहा है। भाजपा की रणनीति भी साफ है। प्रत्याशी के बजाय पार्टी पर फोकस कर चुनाव लड़ना और मतदान केंद्रों पर ज्यादा ध्यान देना। तब भी और मौजूदा दौर में भी यही राजनीतिक परिदृश्य नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा और कमल निशान पर रणनीतिकारों से लेकर कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों का जोर है। दीवारों पर लिखे नारे हो या फिर मतदान के लिए अपील करते कमल निशान का चुनाव चिन्ह। पूरे चुनावी माहौल में बिलासपुर शहर से लेकर सभी आठ विधानसभा क्षेत्रों में दीवारों पर बड़े-बड़े कमल का निशान और अब की बार 400 पार है। पोस्टरों में प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी वाली तस्वीर और स्थानीय प्रचारकों की जुबान पर मोदी की गारंटी। बिलासपुर के आठ विधानसभा क्षेत्र हो या फिर जांजगीर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले छह विधानसभा सीटें। पार्टी और कार्यकर्ता चुनाव लड़ते दिखाई दे रहे हैं। आमतौर पर लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। देशव्यापी मुद्दों के अलावा स्थानीय मुद्दे भी तब हावी हो जाते हैं जब विधायक या मंत्री चुनावी कमान संभाल लेते हैं। बिलासपुर लोकसभा सीट में तो कमोबेश कुछ इसी तरह का दृश्य नजर आ रहा है। लोकसभा उम्मीदवार के बजाय मंत्री व विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर है। इस बात का सीधा-सीधा अहसास विधायक व मंत्री को भी है। तभी तो उम्मीदवार के साथ अपने विधानसभा क्षेत्रों में ये जनंसपर्क करते भी दिखाई दे जाते हैं। क्लस्टर प्रभारी व विधायक अमर अग्रवाल, डिप्टी सीएम अरुण साव ,पुन्नूलाल मोहले, धर्मजीत सिंह, सुशांत शुक्ला अपने विधानसभा क्षेत्रों में बैठक ले रहे हैं।
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