बिलासपुर /मस्तूरी ब्लाक के प्राथमिक शाला देवरी सहायक शिक्षक सावित्री सेन कर रहीं नया प्रयोगप्राइमरी स्कूल के बच्चे स्थानीय बोली व भाषा को ...
बिलासपुर /मस्तूरी ब्लाक के प्राथमिक शाला देवरी सहायक शिक्षक सावित्री सेन कर रहीं नया प्रयोगप्राइमरी स्कूल के बच्चे स्थानीय बोली व भाषा को ज्यादा अच्छे से समझते हैं। मस्तूरी ब्लाक के प्राथमिक शाला देवरी की सहायक शिक्षक सावित्री सेन ने पढ़ाने के तरीके में बदलाव किया है। पंडवानी व भरथरी लोकगीत की तर्ज पर कोर्स पढ़ाती हैं। इससे बच्चे ध्यान लगाकर सुनते हैं और आसानी से समझ भी जाते हैं। इसके अलावा घंटों पढ़ाने के बाद भी बोझिल महसूस नहीं करते हैं। इसके परिणामस्वरूप बच्चों का मानसिक विकास में वृद्धि हो रही है। शिक्षिका सावित्री सेन ने बताया कि नवाचार का संक्षिप्त विवरण पढ़ाई के स्तर के सुधार करने के लिए समग्र शिक्षा की तरफ से बहुत सी योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसे समझना व समझकर कार्य करना होता है, लेकिन समय का अभाव या व्यस्तता के कारण कभी-कभी बोझिल सा महसूस होता है। इसके बाद स्थानीय लोकगीत का आइडिया अपनाया गया। किसी स्थानीय लोकगीत की तर्ज मे सुना जाए तो बोझिल भी नहीं होगा और बच्चे आसानी से समझ भी पाएंगे। लोकगीत के माध्यम से पढ़ाने का असर समुदाय, पालकों व विद्यार्थियों पर सकारात्मक रूप से पड़ा है। एफएलएन के 100 दिन गणितीय एवं भाषायी कौशल की अवधारणा स्पष्ट करने के लिए लोकगीत पंडवानी और भरथरी की तर्ज के माध्यम से शिक्षक समुदाय के बीच उपस्थित होकर सुनाते हैं। पालकों को घर पर अपने बच्चों को गीत के माध्यम से पढ़ाने का प्रशिक्षण देते हैं। सावित्री ने बताया कि मुस्कान पुस्तकालय की कहानी बहुत ही सुंदर, सरल, ज्ञानवर्धक और आकर्षक है। परंतु सभी बच्चे इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं। कक्षा एक से लेकर पांचवी तक स्टोरी विवरण में स्तर अनुसार बहुत सी किताबें है। जो बच्चे पढ़ नहीं पा रहे लेकिन पढ़ना चाहते हैं। उनके लिए कठिनाई हो रही है। तब हमने छोटे छोटे कहानियों को स्थानीय भाषा में अपनी आवाज देकर बच्चों को सुनाना शुरू किया, ताकि वीडियो के माध्यम से कहानी उन तक पहुंचे और कहानी सुनकर समझें। समझकर बोलें और धीरे-धीरे पठन की ओर बढ़ें। कहानी के माध्यम से पढ़ाना शुरू किया तो इसका असर बच्चों की मानसिकता व समझ पर पड़ा। इस नवाचार से यह लाभ हुआ कि जो बच्चे कहानी नहीं पढ़ पा रहे थे उनमें कहानी सुनकर, देखकर पढ़ने की लालसा बढ़ी। बच्चों में भय समाप्त हुआ और वे चित्र देखकर पढ़ने की कोशिश करने लगे और धीरे- धीरे पढ़ने लगे। माताओं तक जब वीडियो भेजा गया तब वे भी घर में अपने बच्चों को दिखाकर समझाने का प्रयास करने लगीं। प्रत्येक दिवस एक नई कहानी के साथ माताओं, पालकों द्वारा काम किया गया। जिस दिन कहानी उपलब्ध नहीं हो पाती वे खुद से नई कहानी सुनाते या वीडियो दिखाते हैं। खेलते-खेलते पाठ को याद करते हैं बच्चे पालकों, बच्चों को जागरूक करने के लिए छत्तीसगढ़ी में गीत बनाकर लोकप्रिय किया है। वहीं इस समय यह लोकगीत शिक्षा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। शिक्षिका पाठ्य पुस्तक के पाठ को लोकगीत और लोकनृत्य और नाटक में ढालकर अभ्यास कराती हैं। इससे बच्चे हंसते-हंसते खेलते हुए पाठ को याद करते हैं। साथ ही हमारी परंपरा और लोकगीत को आगे की पीढ़ी का संदेश पहुंचा रही हैं।
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