रायपुर। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के दो बड़े बदलाव में बस्तर और सरगुजा की विधानसभा सीट की चिंता झलक रही है। एक महीने में कांग्रेस के...
रायपुर। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के दो बड़े बदलाव में बस्तर और सरगुजा की विधानसभा सीट की चिंता झलक रही है। एक महीने में कांग्रेस के केंद्रीय संगठन ने पहले टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी देकर सरगुजा को साधने की कोशिश की। पिछले विधानसभा चुनाव में सरगुजा के मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया और संभाग की 14 विधानसभा सीट में सभी पर कांग्रेस को जीत मिली। इस जीत के पीछे एक तर्क यह भी दिया जाता है कि सरगुजा की जनता ने इस उम्मीद में कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया कि टीएस सिंहदेव मुख्यमंत्री बन सकते हैं। दूसरा बड़ा बदलाव बस्तर सांसद दीपक बैज को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर किया गया है। बस्तर की 12 विधानसभा सीट में सभी पर कांग्रेस के विधायक हैं। दीपक बैज के लोकसभा क्षेत्र की आठ सीट बस्तर संभाग से आती है। राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो बैज के आठ विधानसभा सीट में प्रभाव को देखते हुए उनको मोहन मरकाम के स्थान पर मौका दिया गया है। कांग्रेस के दोनों बदलाव पर विपक्षी दलों को निशाना साधने का कोई अवसर नहीं दिया। भाजपा ने पिछले साल विश्व आदिवासी दिवस के दिन आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय को हटा दिया था। कांग्रेस इसे आदिवासी अपमान के रूप में अब तक प्रचारित कर रही है। बैज के प्रदेश अध्यक्ष बनने से विपक्षी न तो बस्तर की उपेक्षा का आरोप लगा पा रहे हैं, न ही आदिवासी वर्ग के अपमान जैसे मुद्दे उठा पा रहे हैं। कांग्रेस का यह संतुलित कदम आगामी विधानसभा चुनाव के लिए काफी अहम माना जा रहा है। कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो चुनाव से पहले दो कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाएंगे। इसमें रायपुर और बिलासपुर संभाग के एक-एक वरिष्ठ नेता को जिम्मेदारी मिल सकती है। राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो दुर्ग संभाग से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित छह मंत्री हैं। संभाग की 20 में से 18 सीट पर कांग्रेस विधायक हैं। मुख्यमंत्री और मंत्रियों की मौजूदगी से संभाग में कांग्रेस की स्थिति को सही माना जा रहा है। सबसे कमजोर परफार्मेंस बिलासपुर संभाग का है। ऐसे में यहां दमदार उपस्थिति के लिए एक कार्यकारी अध्यक्ष का फार्मूला तैयार किया गया है। प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल में मोहन मरकाम के तीन विवाद भारी पड़े। मरकाम ने प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद चंद्रशेखर शुक्ला को प्रभारी महामंत्री बनाया था। विवाद के बाद मरकाम ने चंद्रशेखर को प्रभारी के पद से हटा दिया था। उस समय मुख्यमंत्री बघेल ने नाराजगी जताई थी। इसके बाद मरकाम ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के समय प्रदेश महामंत्री अमरजीत चावला को अतिरिक्त प्रभार दे दिया था। उसकी शिकायत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राष्ट्रीय महासचिव संगठन केसी वेणुगोपाल से की थी, जिसके बाद चावला से जिम्मेदारी वापस ले ली गई। यही नहीं, विधानसभा के बजट सत्र में मरकाम ने कोंडागांव के डीएमएफ घोटाले को लेकर एक अधिकारी को टार्गेट किया था, जो एक कांग्रेस नेता के पिता हैं। सत्र के दौरान तीखी बहस सुर्खियां बनी थी। वह कांग्रेस नेता मुख्यमंत्री का करीबी है और उसे बाद में युवक कांग्रेस की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई। कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो अगले एक सप्ताह में कांग्रेस संगठन में बड़े पैमाने पर नियुक्ति होगी। बैज के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश महामंत्री, उपाध्यक्ष के कुछ पदों पर बदलाव किया जा सकता है। इसमें टिकट के दावेदार नेताओं को बाहर किया जाएगा। इसके साथ ही करीब 250 पदों पर प्रदेश सचिव और संयुक्त महासचिव के पद पर नियुक्ति होगी।
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