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सिक्लिंग और थैलेसीमिया के 17 साल से ऊपर वयस्क  बच्चों के लिए एक नई उम्मीद की किरण बनकर आई यह लस्पेटरसेप नामक इंजेक्शन

   सिक्लिंग और थैलेसीमिया के 17 साल से ऊपर वयस्क  बच्चों के लिए एक नई उम्मीद की किरण बनकर आई यह लस्पेटरसेप नामक इंजेक्शन  ,  2 दिन पहले ही ...

 


 सिक्लिंग और थैलेसीमिया के 17 साल से ऊपर वयस्क  बच्चों के लिए एक नई उम्मीद की किरण बनकर आई यह लस्पेटरसेप नामक इंजेक्शन  , 

2 दिन पहले ही काश फाउंडेशन की फाउंडर काजल सचदेव और सुरेश सचदेव दिल्ली से थैलेसीमिया बच्चो के लिए एक अच्छी खबर लेकर लौटे है  उनका  बेटा  सुरांश सचदेव 24 वर्ष खुद थैलेसीमिया से पीड़ित है अपने बच्चे के साथ साथ वह पूरे छत्तीसगढ़ के थैलेसीमिया सिकलिंग  बच्चों को ठीक कराने के लिए जुटी हुई है वह कहती हैं कि मैं मेरे बच्चे के इलाज से पहले दूसरे सभी पीड़ित बच्चों का इलाज कराना चाहूंगी ,दिल्ली नेशनल वेलफेयर थैलासीमिया सोसायटी के अध्यक्ष डा जे एस अरोड़ा जी ने अमेरिका से इंजेक्शन लाने में हर संभव मदद की है उन्होंने बताया कि यह इंजेक्शन 17 साल से बड़े वयस्क बच्चो में लगभग 33%  ब्लड चढ़ाने की अवधि को बढ़ा देगा,धीरे धीरे यह जैसे ही असर करेगी, ब्लड और देर से चढ़ेगा, अनुमान है यदि किसी को साल में 24 यूनिट ब्लड लगता है तो 10 ,12 यूनिट ही लगेगा,हो सकता है आगे चलकर ब्लड लगाना ही बंद हो जाए , जिससे ब्लड की खपत भी कम होगी और मुश्किल ब्लड  ग्रुप वाले बच्चे जिन्हे ब्लड मिलता ही नहीं उनके लिए यह बहुत फायदेमंद रहेगी । 

इसके तीन ट्रायल अमेरिका में हो चुके है चौथा ट्रायल भारत में चल रहा है पर दवाई मार्केट में आ चुकी है इसका 1 इंजेकशन 30 हजार का है जो बच्चे को वजन के अनुसार लगेगा।  भारत में सबसे पहले दिल्ली राजीव गांधी के डॉक्टर दिनेश भुरानी जी ने इस इंजेक्शन को कुछ बच्चो को लगाना चालू किया है काश फाउंडेशन की वे हमेशा मदद करते आए है छत्तीसगढ़ में इसे दिलवाने की भी मदद करने के लिए कहा है।

फाउंडर काजल कहती है कि थैलेसीमिया बच्चों को ब्लड चढ़ाने में बड़ी दिक्कत हो रही है और ब्लड की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही है बड़े बच्चों में ट्रांसप्लांट भी इतना सक्सेस नहीं है इसलिए उनकी जिंदगी बचाने का कोई उपाय ही नहीं था परंतु लस्पार्टरसेप्ट नामक इंजेक्शन आने से यह समस्या मानो ऐसा लग रहा है कि धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। 

यह इंजेक्शन अभी महंगा है। गरीब आदमी इसे लगाने की सोच भी नहीं सकता।

  छत्तीसगढ़ में सिकल थैलासीमिया पीड़ित कुल 600 से700बच्चे है 17 साल से ऊपर लगभग 150 बच्चे हैं हर साल 10 बच्चे फिर पैदा हो रहे और इन्हें ब्लड मिलना भी बहुत मुश्किल हो रहा है, थैलेसीमिया बच्चों को हर 15 दिन में ब्लड लगता है ब्लड लगाने के साथ-साथ और कई समस्याएं 

इनफैक्शन भी हो रहा है और यह बहुत खर्चीली बीमारी है कुछ बच्चे तो अपनी उम्र के पहले ही दम तोड़ देते हैं परंतु अब सरकार से उम्मीद है कि वह इन बच्चों के दर्द को समझेगी और जरूर मदद करेगी,जल्द से जल्द यह दवाई सरकार इन बच्चो को निःशुल्क उपलब्ध कराएगी ताकि बड़ी बच्चों को भी जीवन दान मिले।

काश फाउंडेशन इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम पोस्टर बनाकर गांवो गावों में लगाता है परंतु अब भी ऐसे बच्चे रोज पैदा हो रहे,

सरकार को इस पर ठोस कदम उठाना चाहिए , गुजरात सरकार ने शादी से पहले लड़के और लड़की का थलसेमिया  सिकलिंग टेस्ट अनिवार्य कर दिया है जोड़े को शादी का सर्टिफिकेट के लिए HPLC रिपोर्ट जमा करनी होगी।

छत्तीसगढ़ सरकार को भी गर्भवती की HPLC जांच को अनिवार्य करना होगा ताकि ऐसी दर्दनाक बीमारी लेकर ऐसे बच्चे इस दुनिया में न आए।

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